विस्मृति की तरंग

विस्मृति की तरंग
ऊँची उठ रही हैं
इति की यह तटिनी
अब बाढ़ आ गई है

विस्मृति की तरंग-hindivsurdupoetry


ढाह रहे हैं मन से घटनाएँ
छोटे-बड्डी शब्द और चेहरे
जिनके मैं सब-कुछ जानता था
जिन्हें मैं लगभग पर्याय मानता था
अपने होने का
सब किनारे के वृक्षों की तरह
गिर-गिरकर बहते जा रहे हैं
मेरी इति की धार में
दूर-दूर से व्यक्ति-वृक्ष
आ रहे हैं और
मैं उन्हें हल्का-हल्का
पहचान रहा हूँ
जान रहा हूँ बीच-बीच में हूँ
वह इति की तटिनी
बाढ़ है
ऊँची उठ रही हैं
विस्मृति की तरंग!

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